Written by : Sanjay kumar
दिनांक: 26 अप्रैल 2025
पाकिस्तान ने 24 अप्रैल 2025 को औपचारिक रूप से शिमला समझौते को रद्द करने की घोषणा कर दी है। यह समझौता 2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था, जिसके तहत दोनों देशों ने कश्मीर सहित सभी विवादों को शांतिपूर्ण, द्विपक्षीय वार्ता से सुलझाने का संकल्प लिया था। अब इस समझौते के टूटने से दक्षिण एशिया में नया भू-राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है।
1. शिमला समझौते की पृष्ठभूमि:
1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच शिमला में ऐतिहासिक समझौता हुआ था। इसके तहत तय किया गया कि कश्मीर सहित सभी विवादों को बातचीत से सुलझाया जाएगा। युद्ध के बाद के क्षेत्रों का आदान-प्रदान और युद्धबंदियों की रिहाई इसी समझौते के तहत हुई थी। नियंत्रण रेखा (LOC) का निर्धारण भी इस समझौते का एक प्रमुख परिणाम था। (स्रोत: hindi.webdunia.com)
2. भारत को शिमला समझौते से क्या लाभ हुए:
भारत ने शिमला समझौते के जरिए कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीयकरण से बचाए रखा। पाकिस्तान को बाध्य किया गया कि वह कश्मीर मामले को सिर्फ द्विपक्षीय रूप से भारत के साथ सुलझाए, जिससे भारत को वैश्विक दबाव से राहत मिली। LOC की स्थापना से सीमा विवादों को लेकर स्पष्टता भी आई, जिससे भारत को सैन्य दृष्टि से भी लाभ हुआ।
3. भारत को शिमला समझौते से क्या नुकसान हुए:
भारत ने युद्ध में निर्णायक जीत हासिल करने के बावजूद पाकिस्तान पर पर्याप्त दबाव नहीं बनाया और शिमला समझौते में नरमी दिखाई। इससे कश्मीर मुद्दे का स्थायी समाधान निकलने का अवसर चूक गया। इसके अलावा, पाकिस्तान ने बाद में कई बार इस समझौते का उल्लंघन कर आतंकवाद को बढ़ावा दिया, जिससे भारत को निरंतर सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ा। (स्रोत: ndtv.com)
4. पाकिस्तान को शिमला समझौते से क्या लाभ हुए:
पाकिस्तान को अपने लगभग 90,000 युद्धबंदियों की सुरक्षित रिहाई मिली और अपने कब्जे वाले क्षेत्र भी वापस मिले। इससे पाकिस्तान को तत्काल राहत मिली और उसकी सैन्य प्रतिष्ठा को भी कुछ हद तक बचाया जा सका।
5. पाकिस्तान को शिमला समझौते से क्या नुकसान हुए:
शिमला समझौते ने पाकिस्तान के कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की संभावना सीमित कर दी थी। इस समझौते ने पाकिस्तान को भारत के साथ सीधे बातचीत के दायरे में बाँध दिया था, जिससे पाकिस्तान की वैश्विक रणनीति कमजोर हो गई थी। इसके अलावा, लगातार आतंकी गतिविधियों के कारण पाकिस्तान की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और बिगड़ी।
6. शिमला समझौते के टूटने के वर्तमान प्रभाव:
भारत ने पाकिस्तान के साथ सभी वार्ताएँ तत्काल प्रभाव से रोक दी हैं। सीमा पर सेना को हाई अलर्ट पर रखा गया है। पाकिस्तान ने भी भारतीय विमानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया है और व्यापारिक संपर्क तोड़ दिए हैं। संयुक्त राष्ट्र समेत कई वैश्विक संगठनों ने दोनों देशों से संयम बरतने का आग्रह किया है। (स्रोत: ft.com, jagran.com)
7. पाकिस्तान ने जल्दबाजी में अपने ही पैर पर मारी कुल्हाड़ी:
शिमला समझौते को रद्द कर पाकिस्तान ने रणनीतिक दृष्टि से भारी भूल की है। इस कदम से पाकिस्तान ने अपनी वह ढाल भी खो दी है, जिसके तहत वह भारत पर द्विपक्षीय वार्ता के दबाव का खेल खेलता था। अब भारत पर कोई बाध्यता नहीं रही कि वह कश्मीर मुद्दे पर सिर्फ पाकिस्तान से बातचीत करे। इस निर्णय ने न केवल पाकिस्तान की कूटनीतिक स्थिति को कमजोर किया है, बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर भी और अलग-थलग कर दिया है। आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए यह फैसला आत्मघाती साबित हो सकता है।
8. भारत को POK के संदर्भ में संभावित लाभ:
अब भारत पर शिमला समझौते का कोई बाध्यकारी प्रभाव नहीं रहेगा। भारत POK (पाक अधिकृत कश्मीर) को पुनः प्राप्त करने के लिए राजनयिक, कानूनी और सामरिक कदमों को सख्ती से आगे बढ़ा सकता है। संसद ने 1994 में पहले ही सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया था कि POK भारत का अभिन्न अंग है। अब वैश्विक मंच पर भारत इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठा सकता है, जिससे चीन और पाकिस्तान दोनों पर दबाव बढ़ेगा।
9. पाकिस्तान को होने वाले नुकसान:
शिमला समझौते को रद्द कर पाकिस्तान ने अपनी ही कूटनीतिक स्थिति कमजोर कर दी है। अब पाकिस्तान की यह दलील खत्म हो गई है कि भारत के साथ द्विपक्षीय वार्ता से कश्मीर मसला हल किया जाए। वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान को अधिक अलगाव का सामना करना पड़ेगा। FATF जैसी संस्थाओं में पाकिस्तान पर पहले से ही निगरानी है, अब आतंकवाद के प्रायोजन के चलते उस पर और कड़े प्रतिबंध लग सकते हैं। आंतरिक विद्रोह जैसे बलूचिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान की आजादी की मांगें और तेज हो सकती हैं।
शिमला समझौते की समाप्ति से भारत को अपने भू-राजनीतिक हितों को नए स्तर पर आगे बढ़ाने का सुनहरा अवसर मिला है। वहीं पाकिस्तान ने जल्दबाजी में एक ऐसा कदम उठाया है जिसने उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घातक नुकसान पहुँचाया है। अब भारत को चाहिए कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए निर्णायक रणनीति अपनाए और अपने संविधान के अनुसार POK को पुनः भारत में एकीकृत करने की दिशा में ठोस कदम उठाए।