राजस्थान के मेनार गांव में ऐतिहासिक परंपरा के तहत मनी ‘बारूद की होली’—शौर्य, वीरता और गर्व का महापर्व!

written by : Sanjay kumar


“मेनार की बारूद वाली होली: जब गांव युद्ध के मैदान में बदल गया!”

उदयपुर/मेनार, राजस्थान (16 मार्च 2025): शनिवार रात राजस्थान के मेनार गांव में ऐसा नजारा देखने को मिला, मानो कोई ऐतिहासिक युद्ध जीवंत हो उठा हो। हजारों लोगों की भीड़, धमाकों की गूंज, मशालों की रोशनी और तलवारों की चमक ने इस आयोजन को अद्भुत बना दिया।

गांव के ओंकारेश्वर चौक पर जैसे ही टुकड़ियां पहुंचीं, माहौल में जोश और गर्व की लहर दौड़ गई। पारंपरिक सैन्य वेशभूषा में सजे योद्धा बारूद की होली खेलने के लिए तैयार थे। तोपों की गर्जना, हवाई फायर और गेर नृत्य के बीच वीर रस से ओतप्रोत यह आयोजन राजस्थान की समृद्ध परंपराओं और गौरवशाली इतिहास की झलक प्रस्तुत कर रहा था।

ऐतिहासिक परंपरा की अनूठी झलक

शनिवार दोपहर ओंकारेश्वर मंदिर चौक में भव्य लाल जाजम बिछाकर आयोजन की शुरुआत हुई। मेनारिया ब्राह्मण समाज के पंचों और बुजुर्गों (मौतवीरों) का पारंपरिक स्वागत किया गया। इसके बाद, जैन समाज के लोगों ने अबीर-गुलाल उड़ाकर सौहार्द और उल्लास का माहौल बनाया।

देश-विदेश से जुटे हजारों लोग

इस अनूठी होली का साक्षी बनने के लिए राजस्थान के विभिन्न शहरों के अलावा, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और यहां तक कि दुबई से भी लोग पहुंचे। उदयपुर-चित्तौड़गढ़ नेशनल हाईवे पर वाहनों की लंबी कतारें दिखीं, और लोगों को आयोजन स्थल तक पहुंचने के लिए करीब एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ा।

युद्ध जैसा नजारा: शौर्य और परंपरा का संगम

रात 10:15 बजे जैसे ही रस्में शुरू हुईं, गांव के पूर्व रजवाड़ों के वंशज धोती-कुर्ता और कसुमल पाग (साफा) पहने, तलवार और बंदूकें थामे घरों से निकले। ललकारते हुए, गोलियां दागते और तलवारें लहराते वे ओंकारेश्वर चौक पहुंचे। पांच प्रमुख टुकड़ियों ने गांव की रक्षा का प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया, और जब वे शोर के साथ आगे बढ़ीं, तो माहौल का रोमांच चरम पर था।

इसके बाद, महिलाएं मंगल कलश लेकर और पुरुष आतिशबाजी करते हुए बोचरी माता की घाटी पहुंचे, जहां मुगल चौकी पर ऐतिहासिक विजय की वीरगाथा सुनाई गई। वहां मुख्य होली को ठंडा करने की रस्म निभाई गई।

बारूद की होली: जब गांव युद्ध के मैदान में बदल गया

गेर नर्तकों ने तलवारों और लाठियों के साथ रोमांचक नृत्य प्रस्तुत किया। महिलाओं ने वीर रस से ओतप्रोत गीत गाए। जैसे ही सभी योद्धा ओंकारेश्वर चौक पहुंचे, बारूद की होली का मुख्य चरण शुरू हुआ। पांचों टुकड़ियों ने एक साथ हवाई फायर किए, आतिशबाजी हुई और तोपें गरजने लगीं।

हर तरफ बारूद की महक, तलवारों की चमक और गर्जनाओं का शोर था। ऐसा लग रहा था, मानो इतिहास दोबारा जीवंत हो उठा हो और मेनार युद्ध के किसी रणक्षेत्र में बदल गया हो।

“यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि हमारी वीरता और परंपरा का प्रतीक है,” एक स्थानीय निवासी ने गर्व से कहा।


निष्कर्ष:

मेनार की ‘बारूद की होली’ सिर्फ एक रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि पराक्रम, इतिहास और संस्कृति का एक अनूठा संगम है। हर साल की तरह इस बार भी यह आयोजन लोगों के दिलों में जोश, गौरव और रोमांच भरने में पूरी तरह सफल रहा।

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