प्रमुख संवाद, 8 मार्च।
भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनः स्थापित करने पर जोर
कोटा। वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय और केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में “भारतीय ज्ञान परंपरा” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में भारतीय संस्कृति, शिक्षा और ज्ञान परंपरा के महत्व पर विचार-विमर्श किया गया।
मुख्य अतिथि जनार्दनराय नागर विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि भारतीय वांगमय का अध्ययन हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन प्रदान करता है। मुख्य वक्ता प्रो. रामनाथ झा (जेएनयू, नई दिल्ली) ने कहा कि अंग्रेजों ने हमारी ज्ञान परंपरा को कमजोर करने का प्रयास किया, लेकिन अब हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं को पुनः स्थापित करना होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी ने की। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को समझे बिना संपूर्ण शिक्षा अधूरी है।
विशिष्ट अतिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. एस.के. पांडेय रहे। संगोष्ठी में देशभर के शिक्षाविदों और शोधार्थियों ने भाग लिया।
दो तकनीकी सत्रों में हुआ गहन विमर्श
संगोष्ठी के दौरान दो समानांतर तकनीकी सत्र आयोजित किए गए, जिनमें 22 शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। पहले सत्र की अध्यक्षता प्रो. धरमचंद जैन और डॉ. अशोक ने की, जबकि दूसरे सत्र का नेतृत्व इतिहासविद प्रो. एम.एल. साहू और प्रो. रंजन माहेश्वरी ने किया।
कार्यक्रम के संयोजक डॉ. कीर्ति सिंह ने स्वागत उद्बोधन दिया, जबकि डॉ. सुरेंद्र कुलश्रेष्ठ ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संगोष्ठी का संचालन डॉ. कपिल गौतम ने किया। इस अवसर पर विभिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों और शोधार्थियों ने भारतीय ज्ञान परंपरा, साहित्यिक योगदान और शैक्षिक परिदृश्य पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
इस संगोष्ठी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने और इसे आधुनिक शिक्षा प्रणाली में समाहित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।