प्रमुख संवाद
कोटा, 8 मार्च – किन्नर समाज ने अपनी आस्था, शक्ति और एकता का अनुपम प्रदर्शन करते हुए “प्रथम मंगलमुखी फाल्गुन महोत्सव” के तहत पहली बार भव्य रथयात्रा का आयोजन किया। इस ऐतिहासिक आयोजन ने समाज में किन्नर समुदाय की धार्मिक और सामाजिक स्वीकार्यता को एक नई दिशा दी।



गुमानपुरा गद्दीपति नैना देवी, महावीर नगर गद्दीपति रीना और काजल के नेतृत्व में आयोजित इस यात्रा में न केवल किन्नर समाज के प्रमुख संत और महंत शामिल हुए, बल्कि हिंदू संत समाज की उपस्थिति ने इसे और भी दिव्य बना दिया। इस अवसर पर श्रीरामधाम आश्रम के स्वामी अवधेश दास महाराज, श्रीकुलम शक्तिपीठ की पीठाधीश्वर मां नीतिअम्बा, साध्वी हेमा सरस्वती, और उज्जैन किन्नर अखाड़े की 108 श्री श्री माता नंदगीरी महामंडलेश्वर जैसी प्रतिष्ठित हस्तियां उपस्थित रहीं।
शहर ने किया ऐतिहासिक आयोजन का भव्य स्वागत
रथयात्रा का मार्ग पारंपरिक साज-सज्जा, रंग-बिरंगी रोशनी और भक्ति संगीत से गुंजायमान रहा। श्रद्धालु एवं नगरवासी सड़कों के किनारे खड़े होकर इस ऐतिहासिक आयोजन का साक्षी बने। विभिन्न स्थानों पर पुष्पवर्षा और भजन-कीर्तन के साथ यात्रा का स्वागत किया गया।
रथयात्रा के दौरान किन्नर समाज के प्रमुख गुरुजनों ने श्रद्धालुओं को आशीर्वाद स्वरूप एक रुपये का सिक्का प्रदान किया, जिसे समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। किन्नर समाज के इस अनूठे पहल का उद्देश्य न केवल आध्यात्मिकता का प्रचार करना था, बल्कि समाज में उनके बढ़ते सम्मान और स्वीकृति को भी दर्शाना था।
संस्कृति, अध्यात्म और एकता का अनुपम संगम
रथयात्रा के दौरान किन्नर समाज के कलाकारों ने पारंपरिक नृत्य और भजन संध्या के माध्यम से एक अनूठा आध्यात्मिक अनुभव प्रदान किया। भक्ति गीतों और कीर्तन के साथ पूरे वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहित होती रही।
यह यात्रा सेवन वेंडर्स से प्रारंभ होकर गुमानपुरा, टीलेश्वर महादेव चौराहा, केशवपुरा, घटोत्कच सर्किल होते हुए पंडित दीनदयाल स्थित ओंकारेश्वर मंदिर पर संपन्न हुई, जहां विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया गया।
प्रशासन ने किया सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम
इस ऐतिहासिक आयोजन की सफलता सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन द्वारा कड़े सुरक्षा प्रबंध किए गए थे। पूरे मार्ग पर पुलिस बल की तैनाती की गई, जिससे यात्रा शांतिपूर्ण और सुव्यवस्थित तरीके से संपन्न हुई।
किन्नर समाज के लिए यह आयोजन केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी था – “समानता, सम्मान और आध्यात्मिकता का संगम”। यह महोत्सव न केवल उनकी आध्यात्मिक शक्ति को प्रदर्शित करता है, बल्कि समाज में उनके बढ़ते गौरव और स्वीकृति को भी दर्शाता है।
“प्रथम मंगलमुखी फाल्गुन महोत्सव” ने किन्नर समाज के गौरव और परंपराओं को एक नई पहचान दी।