न्याय की प्रतीक्षा: भारतीय न्यायालयों में लंबित मामलों की चुनौती और समाधान

Sanjay kumar

“तारीख पर तारीख: आखिर कब मिलेगा न्याय?”

नई दिल्ली, 02 फरवरी 2025 – भारत की न्यायिक प्रणाली गंभीर संकट का सामना कर रही है, जहां लगभग 5 करोड़ से अधिक मामले अदालतों में लंबित हैं। लंबी कानूनी प्रक्रिया, न्यायाधीशों की कमी, और बढ़ते मुकदमों की संख्या के कारण न्याय मिलने में देरी हो रही है।

लंबित मामलों के प्रमुख आंकड़े (2025 तक):

  • सुप्रीम कोर्ट: 80,344 से अधिक मामले लंबित।
  • हाई कोर्ट: 61 लाख से अधिक लंबित मामले, जिनमें 62,000 से अधिक 30 वर्षों से अधिक पुराने हैं।
  • जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय: 4.46 करोड़ से अधिक मामले लंबित, जिनमें से हजारों 30 वर्षों से अधिक पुराने हैं।
    (Source: Law Ministry & NJDG Reports)

न्यायाधीशों की कमी और सरकार की पहल:

भारत में कुल स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या 26,568 है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट में 34, हाई कोर्ट में 1,114, और जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में 25,420 न्यायाधीश कार्यरत हैं। लेकिन मौजूदा आवश्यकता की तुलना में यह संख्या अभी भी कम है।

वर्तमान सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • न्यायाधीशों की नियुक्ति में तेजी: कॉलेजियम प्रणाली को अधिक पारदर्शी बनाया जा रहा है।
  • तकनीकी सुधार: ई-कोर्ट परियोजना के तहत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और डिजिटल फाइलिंग को बढ़ावा दिया गया है।
  • मध्यस्थता अधिनियम 2023: मुकदमों को कम करने और विवादों को तेजी से हल करने के लिए सरकार ने इसे लागू किया है।
  • नेशनल जुडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG): पारदर्शिता बढ़ाने और मामलों के शीघ्र निपटारे में मदद कर रहा है।

सकारात्मक और नकारात्मक पहलू:

✔ सकारात्मक: 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने 95.7% नए मामलों का निपटान किया, जो न्यायपालिका की कार्यकुशलता को दर्शाता है।
❌ नकारात्मक: हजारों मामले दशकों से लंबित हैं, और न्यायाधीशों की कमी के कारण मामलों का निपटारा धीमा हो रहा है।

लंबित मामलों की बढ़ती संख्या को कम करने के लिए अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति, तकनीकी सुधार, और वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। यदि ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो न्याय मिलने की प्रक्रिया और अधिक लंबी हो सकती है। सरकार और न्यायपालिका को मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान निकालना होगा ताकि नागरिकों को “समय पर न्याय” मिल सके।

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