कोटा उत्तर नगर निगम की बैठक में हंगामा: 701 करोड़ का बजट महज 30 मिनट में जबरन पारित, पार्षदों की आवाज दबाई गई

प्रमुख संवाद

कोटा, 6 फरवरी 2025 – कोटा उत्तर नगर निगम की बुधवार को आयोजित बजट बैठक महज एक औपचारिकता बनकर रह गई। जनता के हितों की अनदेखी और पार्षदों की आवाज को कुचलते हुए 701 करोड़ रुपए का बजट मात्र 30 मिनट में हंगामे के बीच पारित कर दिया गया। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तकरार और आरोप-प्रत्यारोप का ऐसा नजारा सामने आया जिसमें नगर निगम प्रशासन की लाचारी और असमर्थता स्पष्ट रूप से झलकती है।


बैठक या हंगामे का मंच?

दोपहर 3 बजे जैसे ही महापौर मंजू मेहरा ने बजट प्रस्ताव रखा, पार्षदों का गुस्सा फूट पड़ा। “भ्रष्टाचार बंद करो,” “तानाशाही नहीं चलेगी,” और “कोटा को आवारा मवेशियों से मुक्त करो” जैसे नारों के साथ सत्ता पक्ष के ही पार्षदों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया।

उपमहापौर फरीदुद्दीन कुरैशी ने 53 करोड़ के सफाई टेंडर में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए सफाई व्यवस्था की बदहाली पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि टेंडर के बावजूद घर-घर कचरा उठाने के लिए पर्याप्त टिपर नहीं हैं और कचरा प्वाइंटों की सफाई भी नियमित नहीं होती।


महापौर पर अपनों का ही हमला

कांग्रेस शासित बोर्ड में महापौर मंजू मेहरा को अपने ही पार्षदों के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा। रेणु नरवाला, नसरीन मिर्जा, मेघा गुर्जर और अन्य पार्षदों ने महापौर को उनके चैंबर में घेरकर दोबारा बोर्ड बैठक बुलाने की मांग की।

उपमहापौर कुरैशी ने कहा:

“बजट जबरन पेश किया गया, न पार्षदों की सुनी गई और न ही सुझाव लिए गए। अधिकारी और भाजपा पार्षदों की मिलीभगत से 53 करोड़ के सफाई टेंडर में भ्रष्टाचार हुआ है, इसकी जांच होनी चाहिए।”


विकास कार्य ठप, अधिकारी तानाशाह

पार्षद संतोष बैरवा और रेणु नरवाला ने वार्ड में विकास कार्य ठप होने और अधिकारियों के तानाशाही रवैये पर नाराजगी जताई। उन्होंने आरोप लगाया कि:

  • “जनप्रतिनिधियों का अपमान किया जाता है और समस्याएं उठाने पर माइक बंद कर दिया जाता है।”
  • “वार्डों में स्ट्रीट लाइटें नहीं लगाई जा रही हैं और टेंडर निरस्त कर जनता को परेशान किया जा रहा है।”

मेघा गुर्जर ने मुक्तिधामों की बदहाल स्थिति पर कहा:

“जेके लोन अस्पताल के मुक्तिधाम में तो मिट्टी तक नहीं है, जिससे बच्चों के अंतिम संस्कार में परेशानी आती है।”


विपक्ष की भूमिका भी सवालों के घेरे में

बैठक के दौरान विपक्ष के नेता लव शर्मा चुप्पी साधे रहे, जो उनके रुख पर भी सवाल खड़े करता है। बैठक के बाद उन्होंने कहा:

“हम सकारात्मक भूमिका निभाने आए थे, लेकिन कांग्रेस पार्षदों के हंगामे के कारण जनहित के मुद्दों पर चर्चा नहीं हो सकी। हंगामे ने बैठक को औचित्यहीन बना दिया।”

हालांकि विपक्ष के इस रवैये को कई पार्षदों ने ‘मूक समर्थन’ करार दिया।


महापौर मंजू मेहरा का बयान

महापौर मंजू मेहरा ने अपनी सफाई में कहा:

“बोर्ड बैठक में पूरा एजेंडा पेश किया गया और बजट पारित हुआ। जनहित के मुद्दों पर चर्चा के लिए मैंने पार्षदों को पूरा मौका दिया, लेकिन वे जानबूझकर हंगामा कर रहे थे। बजट की कॉपी पहले ही वितरित कर दी गई थी, इसलिए इसे औपचारिक रूप से पढ़ा हुआ मान लिया गया।”


अधिकारियों और नेताओं के बीच ‘मैच फिक्सिंग’ के आरोप

बैठक के दौरान विपक्षी पार्षद बजट प्रस्ताव पर मेज थपथपाते नजर आए, जिससे पार्षदों ने इसे ‘मैच फिक्सिंग’ करार दिया। उपमहापौर कुरैशी ने आरोप लगाया कि:

“अधिकारियों और भाजपा नेताओं की मिलीभगत से बजट जबरन पास कराया गया।”



जनता के अनुत्तरित सवाल:

  1. आखिर 53 करोड़ के सफाई टेंडर में हुई अनियमितताओं की जांच कब होगी?
  2. वार्डों के विकास कार्यों पर लगे ताले कब खुलेंगे?
  3. क्या नगर निगम सिर्फ बजट पास करने का मंच बनकर रह गया है?
  4. जनता की समस्याओं पर हंगामे के बजाय समाधान कब मिलेगा?

इस बैठक ने साफ कर दिया कि कोटा उत्तर नगर निगम प्रशासन न तो पार्षदों की सुनने में सक्षम है और न ही जनता के हितों की रक्षा करने में। भ्रष्टाचार, तानाशाही और अव्यवस्था के आरोपों के बीच पारित हुआ यह बजट कोटा के विकास के बजाय राजनीति की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है।


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