अश्व अनुसंधान और तकनीकी नवाचार: अभियांत्रिकी महाविद्यालय बीकानेर और राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के बीच ऐतिहासिक एमओयू

प्रमुख संवाद

बीकानेर, 11 जनवरी
अभियांत्रिकी महाविद्यालय बीकानेर (ECB) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (NRCE), बीकानेर के बीच एक ऐतिहासिक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए। इस साझेदारी का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को अश्व अनुसंधान और हेल्थकेयर में लागू करना है।

इलेक्ट्रॉनिक्स और एआई: अश्व अनुसंधान में क्रांतिकारी कदम
बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अजय कुमार शर्मा ने इस पहल को मल्टीडिसिप्लिनरी शोध के क्षेत्र में एक बड़ा कदम बताते हुए कहा, “इलेक्ट्रॉनिक्स और एआई आधारित इंस्ट्रूमेंटेशन से अश्व की उत्पादकता और स्वास्थ्य में सुधार होगा, जिससे नस्लीय विकास को गति मिलेगी। यह सहयोग नवाचार और उत्कृष्टता को नई ऊंचाईयों तक ले जाएगा।”

एमओयू का आदान-प्रदान और प्रमुख हस्ताक्षरकर्ता
इस एमओयू पर ईसीबी के प्राचार्य डॉ. ओपी जाखड़ और आईसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्विन्स (हिसार) के निदेशक डॉ. टीके भट्टाचार्य ने हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर अश्व अनुसंधान केंद्र के प्रमुख डॉ. शरत चंद्र जैन, बीटीयू डीन डॉ. यदुनाथ सिंह, डॉ. मुहम्मद कुट्टी सहित विभिन्न विभागाध्यक्ष और फैकल्टी सदस्य उपस्थित रहे।

उद्देश्य और लाभ
एमओयू के तहत दोनों संस्थान अश्व अनुसंधान के लिए आधुनिक तकनीकों का विकास करेंगे।

इंटेलिजेंट इंस्ट्रूमेंटेशन सिस्टम्स: अश्व की निगरानी, स्वास्थ्य जांच और खानपान पर डेटा आधारित समाधान।

ऑटोमेशन सिस्टम: उत्पादकता बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स आधारित स्मार्ट डिवाइस का विकास।

उद्योग-उन्मुख कौशल: छात्र तकनीकी विशेषज्ञता में सुधार कर उद्योगों के अनुरूप अपने कौशल को बढ़ाएंगे।

परियोजना संचालन और अनुसंधान टीम
इस परियोजना की जिम्मेदारी ईसीबी के सहायक प्रोफेसर अरविंद और हरजीत सिंह तथा एनआरसीई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कुट्टी के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ टीम द्वारा संभाली जाएगी।

डॉ. यदुनाथ सिंह का दृष्टिकोण
डॉ. यदुनाथ सिंह, डीन (अकादमिक), ने कहा, “इस साझेदारी से न केवल अश्व अनुसंधान में नवाचार संभव होगा, बल्कि आधुनिक तकनीकी समाधान भी विकसित होंगे जो भारत को वैश्विक मंच पर नई पहचान देंगे।”

यह एमओयू तकनीकी और जैविक अनुसंधान के संगम का एक आदर्श उदाहरण है, जो अश्व अनुसंधान में भविष्य के लिए नई संभावनाएं खोलता है।

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