प्रमुख संवाद, 08 जनवरी।
कोटा। जैन समाज के प्रख्यात आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज के परमस्नेही शिष्य आचार्य 108 प्रज्ञा सागर जी महाराज का बुधवार को कोटा की ओर विहार अत्यंत भव्य और धार्मिक माहौल में संपन्न हुआ।
विमल जैन,वर्धमान फार्म हाउस जगपुरा में आहारचर्या के पश्चात दोपहर 2:00 बजे दिव्य घोषों और गुरुदेव के जयकारों के बीच रानपुर जैन मंदिर की ओर विहार प्रारंभ हुआ। मार्ग में स्थान-स्थान पर श्रद्धालुओं ने पुष्प वर्षा कर गुरुदेव का स्वागत किया।
बूंदी से आई महिला बैंड ने जुलूस की अगवानी की, जिसमें सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु मुनि संघ के साथ रानपुर पहुंचे। मार्ग में 21 तोरण द्वार बनाए गए, जो इस धार्मिक यात्रा की भव्यता को और बढ़ा रहे थे। रानपुर में गुरुदेव के जुलूस के आगे चकरी नृत्य कर श्रद्धालुओं ने आगमन का हर्ष मनाया।
नवीन जैन ने बताया कि मार्ग में 108 थालियों में गुरु संघ का पाद प्रक्षालन किया गया। इस पादपक्षालन में रानपुर समाज,कोटा जैन समाज व मण्डाना जैन समाज के श्रावक शामिल हुए। साथ जुलूस के साथ भव्य आयोजन में गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विभिन्न जिलों से आए श्रद्धालु शामिल हुए। स्थानीय जैन समाज के प्रमुख नवीन जैन ने बताया कि गुरुदेव का आगमन समाज के लिए सौभाग्य का विषय है।
इस अवसर पर गुरुदेव ने कहा, “पाद प्रक्षालन केवल एक रीति नहीं है, यह विनम्रता और समर्पण का प्रतीक है। जीवन में विनम्रता का होना अत्यंत आवश्यक है।
गुरुदेव ने अपने प्रवचन में कहा, “धर्म का मार्ग कठिन है, लेकिन इस पर चलने वाले को अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। हमें अपने कर्मों को शुद्ध रखते हुए जीवन यापन करना चाहिए।”आचार्य श्री ने अपने प्रवचन में कहा कि “मानव जीवन अमूल्य है, इसे व्यर्थ में न गंवाएं। धर्म के मार्ग पर चलकर ही जीवन की सार्थकता है। जो व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चलता है, वह कभी दुःखी नहीं होता।