महाकुंभ 2025: सबसे पहले कौन सा अखाड़ा करेगा शाही स्नान? जानिए इस अनूठी परंपरा का रहस्य

Sanjay kumar, 26 Dec.

शाही स्नान का महत्व और परंपरा
महाकुंभ का आयोजन भारतीय संस्कृति का एक अनूठा अध्याय है, जिसमें लाखों श्रद्धालु और साधु-संत संगम में पवित्र स्नान करते हैं। महाकुंभ के दौरान सबसे पहले शाही स्नान करने का अधिकार नागा साधुओं को होता है, जो धर्म के रक्षक माने जाते हैं। 13 प्रमुख अखाड़ों में इस क्रम को सुनिश्चित करने के लिए अंग्रेजी शासनकाल में एक नियमावली बनाई गई थी, जो आज तक लागू है। प्रयागराज में आयोजित होने वाले 2025 के महाकुंभ में शाही स्नान को लेकर कौन सा अखाड़ा सबसे पहले स्नान करेगा, यह प्रश्न लोगों के बीच उत्सुकता का विषय बना हुआ है।

कौन सा अखाड़ा करेगा सबसे पहले शाही स्नान?
महाकुंभ में शाही स्नान का क्रम पहले से ही तय होता है। परंपरागत रूप से प्रयागराज के महाकुंभ में पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा को सबसे पहले स्नान का अधिकार दिया गया है। हालांकि, इस बार कुछ अखाड़ों के बीच मतभेद के कारण स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हुई है। वहीं हरिद्वार, उज्जैन और नासिक के कुंभ में जूना और निरंजनी अखाड़ों का क्रम अलग-अलग होता है।

शाही स्नान की प्रक्रिया
शाही स्नान का आरंभ अखाड़े के सर्वोच्च संत या महंत द्वारा किया जाता है। वे सबसे पहले अपने अखाड़े के इष्ट देवता की पूजा करते हुए पवित्र नदी में प्रवेश करते हैं। इसके बाद अखाड़े के अन्य नागा साधु संगम में डुबकी लगाते हैं। यह क्रम बहुत ही अनुशासित और भव्य होता है। नागा साधुओं के स्नान के बाद ही आम श्रद्धालुओं को नदी में स्नान की अनुमति दी जाती है।

महाकुंभ में स्नान का आध्यात्मिक महत्व
महाकुंभ में स्नान को आत्मा की शुद्धि और पापों के नाश का प्रतीक माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस अवधि में ग्रह-नक्षत्रों की विशेष स्थिति के कारण नदी का जल अमृत तुल्य हो जाता है। श्रद्धा और भक्ति के साथ डुबकी लगाने वाले को आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।

महाकुंभ 2025: प्रतीक्षा का विषय
हालांकि 2025 के महाकुंभ में पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के पहले शाही स्नान की परंपरा का अनुसरण किया जाना चाहिए, लेकिन अंतिम निर्णय अखाड़ों के आपसी सहमति पर निर्भर करेगा। श्रद्धालु इस अद्वितीय अवसर के साक्षी बनने के लिए उत्साहित हैं।

Disclaimer: यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। कृपया इसे व्यक्तिगत आस्था और विश्वास के आधार पर समझें

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