प्रमुख संवाद
कोटा, 27 नवंबर।
संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। यह वह मार्गदर्शक ग्रंथ है, जिसने न केवल हमारे लोकतंत्र को मजबूत किया है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विविधता और एकता को भी एक स्वरूप दिया है।
संविधान की गरिमा : हाल के समय में संविधान के प्रति लोगों में अश्रद्धा उत्पन्न करने के प्रयास हो रहे हैं। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि संविधान एक पवित्र ग्रंथ है, जो भारतीय मूल्यों और आदर्शों का प्रतीक है। इसके 22 अध्यायों में भारत की विविधता, संस्कृति और जीवन मूल्यों का प्रतिबिंब मिलता है। इनमें भगवान राम, महावीर, बुद्ध, हनुमान और कृष्ण जैसे महान चरित्रों के चित्र और उनके जीवन आदर्शों की झलक देखने को मिलती है।
संस्कृति और संविधान का संबंध: हमारा संविधान केवल कानूनों का संग्रह नहीं, बल्कि हमारी सनातन संस्कृति का मार्गदर्शक भी है। यह हमें यह सिखाता है कि प्राचीन मूल्यों और आधुनिक लोकतंत्र में कैसे सामंजस्य स्थापित किया जाए। हर भारतीय को संविधान का अध्ययन करते हुए इसे अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए।
लोकतंत्र की मजबूती: विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि संविधान दिवस हमारे लोकतंत्र और संविधान की महत्ता को समझने का दिन है। स्वतंत्रता के बाद 360 से अधिक बार सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण हुआ है, जो भारतीय लोकतंत्र की गहराई और स्थिरता को दर्शाता है।
शिक्षा का योगदान:संविधान के प्रति जागरूकता लाने के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। शिक्षक न केवल छात्रों को संविधान के प्रावधान सिखा सकते हैं, बल्कि इसके मूलभूत आदर्शों को उनके जीवन में उतारने की प्रेरणा भी दे सकते हैं। नई शिक्षा नीति में भी संविधान और सांस्कृतिक मूल्यों को समाहित करते हुए इसे छात्रों के लिए अधिक प्रासंगिक बनाने की दिशा में कार्य हो सकता है।
संविधान के प्रति हर भारतीय को सम्मान रखना चाहिए और इसके मूल्यों को समझते हुए समाज में सकारात्मक योगदान देना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि संविधान पर राजनीति नहीं, बल्कि चर्चा और विचार-विमर्श हो। संविधान दिवस हमें यह याद दिलाने का अवसर है कि यह केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता और संस्कृति का आधार है।
“संविधान का सम्मान, संस्कृति का उत्थान।”शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से हमें इसे जन-जन तक पहुंचाना होगा।